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कक्षा 12 बोर्ड परीक्षा हिंदी 100 मार्क्स महत्वपूर्ण लघु और दीर्घ उत्तरीय प्रशन
प्रश्न 1. ‘तिरिछ’ शीर्षक कहानी का सारांश लिखिए।
उत्तर- ‘तिरिछ’ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कथाकार उदय प्रकाश की एक मार्मिक कहानी है, जो लेखक ने अपने पिता पर केन्द्रित की है । लेखक के पिता 55 वर्ष के वयोवृद्ध व्यक्ति हैं । विशिष्ट जीवन शैली के साथ वे मितभाषी भी हैं। घर की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं है । वे एक स्कूल के हैडमास्टर थे । एक दिन शाम को जब वे टहलने निकलने तो एक विषैले जन्तु ‘तिरछ’ ने उन्हें काट लिया । इसका विष सांप की तरह जहरीला और प्राणघातक होता है । रात भर झाड़-फूंक चलती रही । दूसरे दिन सबेरे उन्हें एक मुकदमे के सिलसिले में कचहरी जाना था । ट्रेक्टर पर सवार होकर जाते समय उन्होंने सहयात्रियों को बताया कि उन्हें तिरिछ ने काट लिया है। ट्रैक्टर पर सवार गांव के वैद्य पं. रामऔतार ने रास्ते में ही धतुरे के बीजों का काढ़ा बनाकर उन्हें पिलाकर इलाज शुरू किया । ट्रैक्टर से शहर पहंचने पर उन्हें चक्कर आया, कंठ सूखने लगा । वे शाम को घर नहीं पहुंचे । शहर के लोगों ने उन्हें पागल समझकर पत्थर मारे । असामाजिक तत्व समझकर थाने पर भी उनकी पिटाई हुई । लहूलुहान होकर वे सड़क किनारे बनी मोचियों की दुकान में जा पहुंचे तब गांव के मोची ने उन्हें पहचाना । कुछ ही देर में उनकी मृत्यु हो गई । इस प्रकार वे अंधविश्वास एवं लोगों की संवेदनहीनता के शिकार बन गए ।
प्रश्न 2. ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर- श्रद्धा जो मनुष्य की रागात्मक वृत्ति का प्रतीक है, वह कहती है-जीवन कोलाहलपूर्ण भीषण संघर्ष में मैं आत्मा की मनोहर वाणी हूँ। बुद्धि भौतिक संघर्ष कराती है. एवं श्रद्धा की आत्मिक वाणी शान्ति और सुख लाती है । भौतिक संघर्ष की भीषण हलचल में मनुष्य की बुद्धि निःसहाय हो जाती है तब हृदय का राग ही मनुष्य की सहायता करता है। शत्रुओं को भी मित्र बनाकर शान्ति का साम्राज्य स्थापित करता है। बुद्धि भेद उत्पन्न करता है और प्रेम मेल कराता है । जब मनुष्य की चंचल बुद्धि व्याकुल होकर नींद के क्षणों को खोजती है और न पाकर थक जाती है, हार जाती है, तब मैं मलयानिल की तरह सुख की नींद सुला जाती हूँ। अर्थात् मनुष्य की बुद्धि महत्वाकांक्षी होती है, भौतिक आकांक्षाओं का अन्त नहीं होता । एक इच्छा के बाद दूसरी इच्छा होती रहती है । अर्थात् भौतिक बुद्धि सदैव चंचल रहती है । आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो सकती, अत: एक दिन बुद्धि हार जाती है । तब वह बड़ी व्याकुलता से शान्ति एवं सन्तोष की तलाश करती है । उसे यह शान्ति एवं सन्तोष हृदय के राग तत्व में मिलता है।
श्रद्धा कहती है कि जो मन बहुत दिनों से शोक के सागर में डुबा हुआ है, उसमें आनन्द को किरणों को उसी प्रकार लाती हूँ जिस प्रकार रात के अंधकार में डुबी सृष्टि को उषा की किरणें प्रकाशित करती हैं । अन्धकार में डूबा हुआ वन जिस प्रकार सुबह की बेला में फिर विकसित एवं प्रफुल्लित होकर फूलों से प्रभावशाली प्रतीत होता है, उसी प्रकार पीड़ा के अन्धकार से युक्त मन-रूपी वन भी सुख के प्रभात में आनन्द-रूपी पुष्पों से युक्त होता है और मन को शोक से मुक्त कर सुख और आनन्द से युक्त करना मेरा ही कार्य है । अर्थात् भौतिक उन्नति में संलग्न बुद्धि एक दिन हार जाती हैं। जब आदमी को धोखे का पता चलता है, तब उसका मन घोर पीड़ा और निराशा से भर जाता है
प्रश्न 3. ‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर-यह कविता विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित है । इसका नायक अपने नन्हें बेटे को कंधे पर बिठाकर अपनी नन्हीं बिटिया से जो घर के भीतर बैठी है—पछता है कि बनला आस-पास कहां लोहा है ? उसे लगता है कि बिटिया चिमटा, कलछुल, कड़ाही, सांकल, कब्जा. कील आदि का नाम लेगी । लकड़ी के दो खम्भों पर बंधा हुआ तार भी लोहे का है जिस पर उसके भाई की चड्डी है । वह साइकिल और सेफ्टीपिन में भी लोहा बताएगी । वह अपनी दुबली-पतली किन्तु बुद्धिमति बिटिया को यह बता देना चाहता है कि लोहा और किस सामग्री में है जिससे उसे इसकी पूरी जानकारी प्राप्त हो जाए।
कवि उसे बताता है कि फावडा, कदाल, टैनिया, वसला, खुरपी, बैलों की घंटी आदि में भी लोहा है । कवि की पत्नी उसे बताएगी कि बाल्टी, घिरनी, हँसिया, चाकू में भी लोहा है । भिलाई की लोहे की खानों में जगह-जगह लोहे के टीले हैं । इस प्रकार कवि समस्त परिवार के साथ मिलकर लोहे की खोज करेगा और पाएगा कि हर मेहनतकश आदमी लोहा है दबी-सतायी बोझ उठाने वाली औरत भी लोहा है और कदम-कदम पर हर गृहस्थी में व्याप्त है वह सोचता है कि उसके कंधे पर बैठा छोटा सा बालक जल्दी से बड़ा होकर उससे भी बड़ा. पद प्राप्त करे और उसकी नन्हीं सी बिटिया सयानी होकर योग्य तथा सुंदर वर प्राप्त करे ।
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