पर्यटन का महत्त्व हिन्दी लेखन
हम एक स्थान पर रहते-रहते ऊब जाते हैं। हमारी इच्छा होती है कि हम दूसरे स्थानों पर जाएँ और वहाँ घूम-फिरकर मनोरंजन करें। ‘पर्यटन’ का शाब्दिक अर्थ होता है-घूमना-फिरना, इधर-उधर भ्रमण करना, यात्रा करना।
पर्यटन शिक्षा के लिए बहुत आवश्यक है। हम पुस्तकों में लिखे पर्वत, झील, समुद्र तथा ऐतिहासिक स्थलों के वर्णन पढ़ते हैं, पर इनके प्रत्यक्ष संपर्क के अभाव में हम इनसे भलीभाँति परिचित नहीं हो पाते। धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के वर्णन हम पुस्तकों में खूब पढ़ते हैं, पर उन्हें प्रत्यक्षतः देखने का आनंद ही दूसरा होता है।
प्राचीन काल में भारत में पर्यटन का बहुत महत्त्व था। महर्षि नारद और परशुराम का लोकभ्रमण हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित मिलता है। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बौद्ध भिक्षुक दक्षिण-पूर्व एशिया के सुदूर देशों तक गए थे। दूसरे देशों से भी अनेक पर्यटक भारत आए थे। इनमें ह्वेनसांग, फाह्यान और इब्नबतूता के नाम उल्लेखनीय हैं।
पर्यटन ज्ञान-प्राप्ति के सर्वोत्तम साधन हैं। पर्यटन करनेवाले व्यक्ति कष्टसहिष्णु (कष्ट सहने की क्षमता वाले) होते हैं। उनकी क्षुद्र स्वार्थ-भावना समाप्त हो जाती है। उनके जीवन में नियमितता, धैर्य, दृढ़ता, साहस. परोपकार, जनकल्याण तथा उदारता का विकास होता है। पर्यटन से ज्ञान-प्राप्ति के साथ मनोरंजन की भी प्राप्ति होती है। मनोरंजन से शरीर और मन स्वस्थ होते हैं। पर्यटन के समय व्यक्ति घर-परिवार की चिंताओं से मुक्त होकर आत्मिक विकास के शुभ अवसर प्राप्त करते हैं। पर्यटन से हमारे ज्ञान की संकीर्णता दूर होती है। हम विभिन्न जातियों, वर्णों, संस्कृतियों और सभ्यताओं के प्रत्यक्ष संपर्क में आते हैं। इससे हमें आत्मविश्लेषण के अवसर प्राप्त होते हैं। पर्यटन में कुछ कष्ट तो अवश्य होता है, पर इससे होनेवाले आनंद और ज्ञान की तुलना में यह (कष्ट) नगण्य है।
आज की दुनिया में पर्यटन व्यवसाय का रूप धारण कर रहा है। देश की सरकार अपने यहाँ पर्यटन स्थलों का विकास करने पर या है। इससे विदेशी मुद्रा के भंडार में वृद्धि होती है। भारत में केंद्रीय सरकार अतिरिक्त प्रादेशिक सरकारें भी पर्यटन स्थलों के विकास पर साचित दे रही हैं। पराने पर्यटन स्थलों को और अधिक रमणीय बनाया जा रहा वहाँ आधुनिक सुख-सुविधाओं की सारी वस्तुएँ उपलब्ध कराई जा रही पर्यटन-स्थलों में अच्छे-अच्छे रिसोर्ट्स बनाए जा रहे हैं और स्विमिंग पर की व्यवस्था की जा रही है ताकि लोग इनके आकर्षण में वहाँ पर्यटन आएँ। भारत में पर्यटन की अमित संभावनाएँ हैं। प्रकृति ने भारत मुक्तहस्त अपनी सुंदरता लुटाई है। अतः भारत में पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है।
यह भी पढ़े
आओ प्रकृति की ओर चले हिंदी लेख
विज्ञान के वरदान और अभिशाप हिन्दी लेखन
आधुनिक युग विज्ञान का युग है। जल, थल और आकाश इन तीनों क्षेत्रों में इसके आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले कार्य (चमत्कार) हमें अभिभूत कर देते हैं। विज्ञान ने अनेक भौतिक सुख-सुविधाएँ आविष्कृत कर मानव जीवन को सुखमय बना दिया है।
वायुयान, रेल, मोटर कार, स्कूटर, मोटर साइकिल और ट्राम से हम बहुत जल्दी लंबी दूरी तय कर सकते हैं। अब तो जमीन के नीचे भी रेलगाड़ियाँ (मेट्रो ट्रेन) चलने लगी हैं। विज्ञान ने ध्वनि की गति से भी तेज
चलनेवाले रॉकेटों का आविष्कार कर लिया है। विज्ञान अब आकाश के सुदूर – ग्रहों पर रॉकेट उतार रहा है। विज्ञान की सहायता से हम चंद्रमा पर उतर चुके हैं और मंगल तथा शुक्र ग्रहों पर उतरने का प्रयास कर रहे हैं। आनेवाले दिनों में विज्ञान को इसमें अवश्य सफलता प्राप्त होगी। टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, फैक्स, रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर, वीडियो और सिनेमा ने तो संसार की पुरानी सभ्यता को एकदम बदल दिया है।
बड़ी-बड़ी नदियों पर बड़े-बड़े पुल विज्ञान से ही संभव हुए हैं। कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अद्भुत कार्य किए हैं। खाद, बीज, कीटनाशक दवाओं और सिंचाई के साधनों से कृषि-उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है। शल्यचिकित्सा (ऑपरेशन), प्लास्टिक सर्जरी और विभिन्न दवाओं के आविष्कार से विज्ञान ने मानव-जीवन को अनेक रोगों से मुक्त किया है। टेस्टट्यूबों में बच्चों को पालकर इसने चमत्कारी कार्य किया है। विज्ञान अब भविष्य बतानेवाला ज्योतिषी बन गया है। आँधी, तूफान, वर्षा आदि की सूचना यह पहले ही दे देता है, जिससे हम अपनी सुरक्षा की व्यवस्था समय पर कर लेते हैं। रोबोट विज्ञान का अद्भुत आविष्कार है। वैज्ञानिक आविष्कारों के कितने नाम गिनाएँ! हमारी दृष्टि जहाँ भी जाती है, विज्ञान वहीं खड़ा मिलता है।
विज्ञान ने मानव-जीवन को जितनी खुशी दी है, उससे कहीं ज्यादा इसने मानव-जीवन को विनाश की ओर धकेला है। इसने ऐसे-ऐसे विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र बनाए हैं, जिनसे सारी पृथ्वी क्षणभर में राख हो सकती है आर इसकी हजारों-हजार वर्षों की अर्जित भौतिक-सांस्कृतिक संपदा देखते-ही देखते स्वाहा हो सकती है। प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध में विज्ञान न अपने विनाशकारी स्वरूप का अच्छा परिचय दिया है। कुछ वर्ष पूर्व इराक और अमेरिका के बीच हए युद्ध ने विज्ञान के घिनौने चेहरे से हम सबका परिचित कराया है। हाइड्रोजन और परमाणु बमों के आतंक से सारी दुनिया कॉप रही है। विज्ञान ने प्रदूषण की समस्या खड़ी की है और मानव तथा संपूर्ण प्राणि-जगत को छटपटा-छटपटाकर मरने को अभिशप्त किया है। लेकिन, इन सबके लिए विज्ञान को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह तो साधन है, जिसे प्रयोग में लाना मनुष्य पर निर्भर करता है। हम विवेकशील होकर ही विज्ञान को वरदान सिद्ध कर सकते हैं। विज्ञान तो केवल वरदान है, उसे हम अनैतिक और स्वार्थी लोग ही अभिशाप में बदल देते हैं।