12th Board Exam Hindi Language Paper Most VVI Short Type Question on New Pattern
1. शिक्षा का क्या अर्थ है ? जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों ?
उत्तर- शिक्षा का अर्थ जीवन के सत्य से परिचित होना और संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को ‘ समझने में हमारी मदद करना है । क्योंकि जीवन विलक्षण है, ये पक्षी, ये फूल, ये वैभवशाली वक्ष. ये आसमान, ये सितारे, ये मत्स्य सब हमारा जीवन है । जीवन दीन है, जीवन अमीर भी । जीवन गूढ़ है, जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएँ ईाएँ, महत्त्वाकांक्षाएँ, वासनाएँ, भय, सफलताएँ एवं चिंताएँ हैं । केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा जीवन है । हम कुछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लेते हैं, हम विवाह कर लेते हैं, बच्चे पैदा. कर लेते हैं और इस प्रकार अधिकाधिक यंत्रवत बन जाते . हैं । हम सदैव जीवन से भयाकुल, चिंतित और भयभीत बने रहते हैं । शिक्षा इन सबों का निराकरण करती है । भय के कारण मेधा शक्ति कुंठित हो जाती है। शिक्षा इसे दूर करता है। शिक्षा समाज के ढाँचे के अनुकूल बनने में आपकी सहायता करती है या आपको पूर्ण स्वतंत्रता होती है । वह सामाजिक समस्याओं का निराकरण करे शिक्षा का यही कार्य है।
हम जानते हैं कि बचपन से ही हमारे लिए ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो । हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं, त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं, हम जीवन से भयभीत रहते हैं, नौकरी के छूटने से, परंपराओं से और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी या पत्नी या पति क्या कहेंगे, हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रूप में भयभीत हैं और जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं है। ‘निस्संदेह यह मेधा शक्ति भय के कारण दब जाती है । मेधा शक्ति वह शक्ति है जिससे आप भय और सिद्धांतों की अनुपस्थिति में स्वतंत्रता के साथ सोचते हैं ताकि आप अपने लिए सत्य की, वास्तविकता की खोज कर सकें । यदि आप भयभीत हैं तो फिर आप कभी मेधावी नहीं हो सकेंगे। क्योंकि भय मनुष्य को किसी कार्य को करने से रोकता है । वह महत्त्वाकांक्षा फिर चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, चिंता और भय को जन्म देती है । अतः यह ऐसे मन का निर्माण करने में सहायता नहीं कर सकती जो सुस्पष्ट हो, सरल हो, सीधा हो और दूसरे शब्दों में मेधावी हो ।
2. ‘जूठन’ कहानी का सार अपने ब्दों में लिखें।
उत्तर : आधुनिक हिन्दी-साहित्य-लेखन में दो धाराएँ आज प्रमुखता से बह रही हैं-एक दलित-लेखन एवं दूसरा नारी स्वातंत्र्य-विषयक लेखन। दोनों ही सदियों से समाज के कमजोर वर्ग रहे हैं। ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित-पीड़ा को अभिव्यक्ति देनेवाले लेखक हैं।
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने ‘जूठन’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखी है, जिसमें दलितों की पीड़ा बोल रही है। दलित वर्ग सदियों से अन्याय, अपमान, उत्पीड़न और अभाव झेल रहा है। उसे जूठन खाना पड़ता है।
लेखक अपनी ही आत्मकथा में अपनी ही पीड़ा का बेबाक चित्रण उपस्थित करता है।
स्कूल में लेखक को झाडू लगाना पड़ता था। स्कूल के शेष बच्चे उसे देखकर हँसते रहते थे। हेडमास्टर द्वारा दी जा रही इस यातना से लेखक का रोम-रोम काँप उठता था। लेखक के पिता ने स्कूल जाकर डाँट-डपट की। पिता के हौसले पर लेखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ।
जूठन खाना अत्यन्त अपमान की बात है। पर जिसका पेट न भरा हो और पेट भरने के लिए कोई जीविका न हो और प्रतिमाह वेतन का कोई रास्ता न हो तो उसके लिए मान क्या? अपमान क्या? दोनों बराबर!
कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण लेखक की माँ मेहनत-मजदूरी करती थी। वह साफ-सफाई का भी काम करती थी। पारिश्रमिक भी पर्याप्त न मिलता था।
शादी-ब्याह के मौकों पर मेहमान या बाराती के खाना खा लेने के बाद बड़े-बड़े टोकरों में पत्तल सहित जूठन उठाया जाता था। गरीब जूठन खाकर अत्यन्त प्रसन्न हो जाते थे। अक्सर ऐसे मौकों पर बड़े-बूढ़े ऐसी बारातों का जिक्र बहुत रोमांचक लहजे में सुनाया करते थे कि उस बारात से इतनी जूठन आई कि महीनों खाते रहे। सूखी पूड़ियाँ बरसात के कठिन दिनों में बहुत काम आती थीं। अब लेखक जब इन सब बातों के बारे में सोचता है तो उसके मन के भीतर काँटे जैसे उगने लगते हैं। लेखक को ऐसे जीवन पर अपमान महसूस होता है। बदला लेने की भावना बलवती होने लगती है।
दिन-रात मर-खपकर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन, फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं। कोई शर्मिंदगी नहीं, कोई पश्चात्ताप नहीं।
बड़े घरों के लोग जब लेखक के शहर के निवास पर आते तो उनका मान-सम्मान होता था। बदले में वे जहरीली टिप्पणियाँ कर जाते थे।
निष्कर्षत: दलित-लेखन के एक श्रेष्ठ लेखक हैं-ओमप्रकाश वाल्मीकि और उनकी श्रेष्ठ रचना है-‘जूठन’ जो पाठकों के हृदय में दलित-कल्याण करने की प्रेरणा जगाती है और जगाती है दलितों में ऊपर उठने की भावना।
3. ‘ओ सदानीरा’ का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर :- ‘ओ सदीनारा’ शीर्षक निबंध के निबंधकार जगदीशचन्द्र माथर हैं। माथुर जी एक प्रतिभाशाली निबंधकार हैं। ‘उनके लेखन के बहलांश पर नेहरू युग की कल्पनाशीलता, नवनिर्माण चेतन तथा आधुनिक बजानिक परिदृष्टि की छाप है। तदनुरूप वे जीवन और रचना दोनों एक सुव्यवस्था, सुरुचि और कलात्मकता को आवश्यक मानते थे। सौंदर्यप्रियता और लालित्यबोध उनकी अभिरुचि के अंग थे।’ ‘यह निबंध ‘सदानीरा’ गंडक नदी को निमित्त बनाकर लिखा गया है पर उसके किनारे की संस्कति और जीवन प्रवाह की अंतरंग झाँकी पेश करता हुआ जैसे स्वयं गंडक की तरह ही प्रवाहित होता दिखलाई पड़ता है।’
का गंडक चम्पारण में बहनेवाली उच्छृखल नदी है। यह नदी अपना बहाव क्षेत्र और रास्ता बदल लिया करती है। गौतम बुद्ध के समय घना जंगल था, वृक्षों की जड़ों में पानी रुका रहता था। बाढ़ आती थी पर इतनी प्रचंड नहीं। पिछले छह-सात सौ साल में महावन, जो चम्पारण से गंगा तक फैला हुआ था, कटता चला गया ऐसे ही जैसे अगणित मूर्तियों का भंजन होता गया। वृक्ष भी प्रकृति देवी, वन श्री की प्रतिमाएँ हैं। वसुंधराभोगी मानव और धर्मांध मानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
के वर्तमान और अतीत की आद्यंतहीन कड़ी है गंडक नदी। न जाने कितने महात्माओं और संतों ने इसके किनारे तप और तेज पाया, किन्तु गंडक कभी गंभीर न बन सकी और इसीलिए इसके किनारे तीर्थस्थल भी स्थाई न रह सके। गंडक तो उच्छृखल कन्या ही रही-ज्येष्ठा-सहोदरा गंगा का गांभीर्य इसे सुहाया नहीं।
गंडक ने कोई स्मृतियाँ नहीं छोड़ी। भवन नहीं, मंदिर नहीं, घाट नहीं। हवाई जहाज से गंडक घाटी के दोनों ओर नाना आकृति के ताल दीख पड़ते हैं, कहीं उथले कहीं गहरे किन्तु प्रायः सभी शस्य-श्यामला धरती रूपी गगन के विशाल अंतस् में ठिठकी हुई बदहालियों की भाँति टेढ़े-मेढ़े परन्तु शुभ्र एवं निर्मल। इन तालों को कहते हैं ‘चौर’ और ‘मन’। चौर उथले ताल हैं जिनमें पानी जाड़ों और गर्मियों में कम हो जाता है और खेती भी होती है। मन विशाल और गहरे ताल हैं।
गंडक नदी का जल सदियों से चंचल रहा है। इसने कई तीरथ तोड़े। अब वे खंडहर दिखाई पड़ते हैं।
भैंसालोटन में भारतीय इंजीनियर जंगल के बीच निर्माण कार्य कर रहे हैं-नारायण का। ये बनने वाली नहरें ही इस नारायण की अनेक भुजाएँ हैं, बिजली के तारों का जाल ही तो उसका त्राणकर्ता चक्र है। लेखक मन ही मन उन्हें नमस्कार करता है।
ओ सदानीरा ! ओ चक्रा ! ओ नारायणी ! ओ महागंडक ! युगों से दीन-हीन जनता इन विविध नामों से गंडक को सम्बोधित करती रही है। गंडक की चिरचंचल धारा ने आराधना के फूलों को ठुकरा दिया।
समासत: गंडक नदी की चाल-ढाल और उसके कारण परिवर्तनों को . निबंधकार ने रेखांकित किया है। यह अत्यन्त दिलचस्प निबंध बन गया
Class 12th Exam Hindi Most VVI Short Type Question Language Paper, Class 12th Hindi Language Paper Most VVI Question On Latest Pattern, 12th 100 marks Hindi book pdf, 12th Hindi 100 marks question answer,12th Hindi book 100 marks, 12th Hindi 100 marks objective Short Long Type Question & Answer, Hindi 100 marks 12th objective, Bihar board 100 marks Hindi book,12th Hindi book 100 marks, 12th Hindi book 50 marks pdf download, कक्षा 12 हिंदी 100 मार्क्स महत्वपूर्ण प्रशन, 12th Hindi Exam के प्रशन 12th Board Hindi 100 Marks VVI Question, Exam Question Answer Hindi 100 Marks Answer Key Bihar Board 10th Class Question
10TH 12TH 2021 MOBILE APP | |
Class 10th | CLICK |
Class 12th | CLICK |
10th Mobile App | CLICK |
12th Mobile App | CLICK |
12TH BOARD SCIENCE STREAM | |
Physics | CLICK |
Chemistry | CLICK |
Biology | CLICK |
Mathematics | CLICK |
Hindi 100 | CLICK |
English 100 | CLICK |
Hindi 50 | CLICK |
English 50 | CLICK |
Class 12th Exam Hindi Most VVI Short Type Question Language Paper, 12th Exam Language Paper Hindi Most Important Question, BSEB 12th Exam Hindi VVI Important Guess Question, 12th Exam Hindi Language Paper Most Important Question for Bihar Board, 12th Board Exam Hindi 100 Marks Important Subjective Type Question on New Pattern, 12th Board Exam Hindi Language Paper Most VVI Short Type Question on New Pattern