आतंकवाद हिंदी लेखन
राज्य या विरोधी वर्ग को दबाने के लिए भयोत्पादक उपायों का अवलंबन ‘आतंकवाद‘ कहलाता है। राज्य, सरकार, विरोधी वर्ग या जनता को झुकाने या प्रभावित करने के लिए भयोत्पादक उपायों का सहारा लेनेवाला आतंकवादी कहलाता है। ‘आतंकवाद‘ से मिलता–जुलता एक शब्द ‘उग्रवाद‘ है। पर, इन दोनों में अंतर है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी, जातीय तथा धार्मिक शोषणों से मुक्त होने के लिए की गई हिंसात्मक कार्रवाई ‘उग्रवाद‘ कहलाती है। ‘उग्रवाद‘ में शोषण के विरुद्ध संघर्ष होता है। ‘आतंकवाद‘ में शोषण से मुक्ति की नहीं अपने प्रसार की कामना होती है। हिंसा के धरातल पर ‘उग्रवाद‘ और ‘आतंकवाद‘ एक–से दिखाई पड़ते हैं, पर वास्तविकता यह है कि उग्रवाद‘ शोषण के विरुद्ध लाचारी में उठाया गया अमानवीय कदम है तो ‘आतंकवाद‘ अपने हठ को सबके माथे पर थोपने का हिंसात्मक पाशविक कृत्य।
‘आतंकवाद‘ अतिवाद का घृणित रूप है। अतिवाद संकीर्ण मनोवृत्ति का परिचायक होता है। अतिवाद में विवेकहीन हठधर्मिता ही आतंकवाद की जननी होती है। आज सारा विश्व आतंकवाद की गिरफ्त में है। विश्व का कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ आतंकवादी और उग्रवादी गतिविधियाँ देखने को न मिलती हों। अभावात्मक आतंकवाद‘ ने आज सारे विश्व में मानव–जीवन को संत्रस्त, अनिश्चित और अरक्षित बना दिया है।
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आओ प्रकृति की ओर चले हिंदी लेख
भारत दो दशकों से आतंकवाद से जूझ रहा है। इसी ‘आतंकवाद’ के चलते मई 1999 में पाकिस्तान के साथ भारत कारगिल में भिड़ा और 17 जुलाई को भारत ने विजय प्राप्त की। 23 जुलाई को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा- “युद्ध खत्म हो गया, पर लड़ाई जारी है।” यह लड़ाई आतंकवाद के साथ है।
कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान आए दिन आतंकवादी हथकंडे अपनाता है। सैनिक शिविरों में घुसकर बम विस्फोट करना, रॉकेट लांचरों से सैनिक शिविरों पर आक्रमण करना, भीड़-भाड़वाली जगहों पर बम विस्फोट करना, निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाना, मानव-बमों से महत्त्वपूर्ण राजनेताओं को मारने की साजिश करना, संसद भवन में घुसने का दुस्साहस करना आदि आतंकवादी गतिविधियों से पाकिस्तान भारत पर दबाव बनाने की लगातार कोशिश करता रहा है। पर, भारत भी अपने संकल्प में दृढ़ है। कश्मीर समस्या का निदान केवल ‘शिमला समझौता’ और ‘लाहौर वार्ता’ के आधार पर ही हो सकता है भारत का यह अडिग संकल्प अत्यंत सराहनीय है। ‘आतंकवाद’ दबाव का सिद्धांत है, जिसके द्वारा अपने हठ को दूसरों के ऊपर थोपा जाता है। भारत ‘आतंकवाद’ के विरुद्ध सारे विश्व को सजग करता रहा, पर शौर्य के मद में भूले राष्ट्रों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
मेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जब हमला हआ तब अमेरिका की आँखें खली। उसने तालिबानों को नष्ट करने की शपथ खाई और अपने अथक प्रयासों से उसने अफगानिस्तान को आतंकवादी चंगुल से मुक्त किया। आज
रिका सारे विश्व से आतंकवाद को खत्म करने की बात करता है, पर यह तो भविष्य ही बताएगा कि वह आतंकवाद को नष्ट करने में सफल होगा या नहीं। लेकिन, यह भी सत्य है कि यदि विश्व के सारे राष्ट्र आतंकवाद को टर करने का दृढ़ संकल्प ले लें तो आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। आतंकवादी संगठनों का केंद्रीय स्थल सबको ज्ञात है, पर दृढ इच्छा शक्ति के अभाव में उसपर सही समय पर आक्रमण नहीं हो पा रहा है। 2008 में मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के प्रति अपने कड़े रुख का इजहार किया है और आतंकवाद को समाप्त करने के लिए अपनी राजनीतिक तथा कूटनीतिक सक्रियता प्रदर्शित की है। यह अच्छी बात है।
वर्षाऋतु हिंदी लेखन
वसंत को ऋतुओं का राजा और वर्षा को ऋतुओं की रानी कहते हैं। यह ऋतु बड़ी आकर्षक और सुहानी होती है। ग्रीष्मऋतु के बाद इस ऋतु का आगमन होता है। भारत में मौनसून की प्रथम वर्षा प्रायः मध्य जून में होती है। इसके बाद वर्षा होने का क्रम शुरू हो जाता है। सितंबर तक समय-समय हलकी या भारी वर्षा होती रहती है। मध्य जून या अंतिम जून से सितंबर तक की अवधि को हम वर्षाऋतु में परिगणित करते हैं। पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे सभी इस ऋतु का स्वागत करते हैं; क्योंकि यह ऋतु इन्हें जीवन (जल) प्रदान करती है।
चढ़ते आषाढ़ में जब आकाश में बादल घिरने लगते हैं तब सबके मन में झमाझम वर्षा की कल्पना से आनंद की लहरें मचलने लगती हैं। किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता! बच्चे उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और उछल-कूद मचाने लगते हैं। पहली वृष्टि होती है, सबकी प्रतीक्षा सुहागिन होती है। बच्चे झमाझम वर्षा में चहक-चहककर स्नान करने लगते हैं। किसान फसलों के संबंध में योजनाएँ बनाने लगते हैं। _वर्षाऋतु में प्रकृति के अंग-अंग में हरापन छा जाता है। पेड़-पौधे वर्षा में झूम-झूमकर स्नान करते हुए इस ऋतु की प्रशंसा में नृत्य करते हुए जान पड़ते हैं। यह ऋतु सूखी घास में भी जान डाल देती है, सूखी टहनियों में मरसता का संचार कर देती है और सूखी धरती में तरलता का विधान कर देती है। इस ऋत की तरलता सूखे आकाश में आर्द्रता का विस्तार करती है। ऋत में यदि पर्याप्त वर्षा हुई तो मैदान मखमली घास से ढंक जाते हैं, नदि लहरा उठती हैं और सूखे कूप–तालाब पानी से लबालब भर जाते हैं। इस में पर्याप्त से अधिक वर्षा होने पर नदियों में बाढ़ आ जाती है जिस जान–माल की अपार क्षति होती है।
वर्षा की फुहारें मनभावन होती हैं, पर इससे कम मनभावन नहीं होता इसके पूर्व का दृश्य! वर्षा के पूर्व आकाश में काले–काले मेघ घिरने लगते हैं। धीरे–धीरे हवा बहने लगती है। बादलों के अंक (गोद) में बिजली कौंधने लगती है। रह-रहकर बादल गरजने लगते हैं। रंग–बिरंगे बादलों की धमाचौकड़ी भला किसका मन नहीं मोह लेती! ऊपर बादलों की धमाचौकड़ी और नीचे (धरती पर) बालकों की धमाचौकड़ी। कभी तेज हवा के झोंके बादलों को उड़ाकर आकाश में इस छोर से उस छोर कर देते हैं, तो कभी मंट हवा के मधुर स्पर्श बादलों को (पास–पास आकर अपनी) एकता प्रकट करने का अवसर प्रदान करते हैं। धरती के पेड़–पौधे वर्षा के स्वागत में झूम उठते हैं, मेढ़क टरटराने लगते हैं, पंछी अपने–अपने बसेरे की ओर जाने के लिए तत्पर हो उठते हैं और कृषकों के हृदय में झमाझम वृष्टि के सार्थक सपने सजने लगते हैं।