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27. थारूओं की कला का परिचय पठित पाठ के आधार पर दें।
उत्तर : थारू भी चंपारण में बाहर से आकर बसी जाति है। थारू अपने को आदिवासी नहीं मानते थे। थारू शब्द को थार-राजस्थान से निकला मानते हैं।
थारूओं की कला मूलतः उनके दैनिक जीवन का अंग है। जिस पात्र में धान रखा जाता है वह सींक का बनाया जाता है, कई तरह के रंगों और डिजाइनों के साथ। सींक की रंग-बिरंगी टोकरियों के किनारे सीप की झालर लगाई जाती है। झोपड़ी में प्रकाश के लिए जो दीपक है, उसकी आकृति भी कलापूर्ण है। शिकारी और किसान के काम के लिए जो पदार्थ मूंज से बनाए जाते हैं, उनमें भी सौंदर्य और उपयोगिता का अदभुत मिश्रण दिखाई देता है।
नववधू का अनोखा अलंकरण मात्र आभूषण ही नहीं है। हर पत्नी दोपहर का खाना लेकर पति के पास खेत में जाती है। नववधू जब पहली बार इस कर्तव्य को निबाहने जाती है तो अपने मस्तक पर एक सुंदर पीढ़ा रखती है, जिसमें तीन लटें-वेणियों की भाँति लटकी रहती हैं। हर लट में धवल सीपों और एक बीज विशेष सफेद दाने के पिरोए होते हैं। पीढ़े के ऊपर सींक की कलापूर्ण टोकरी में भोजन रखा होता है। टोकरी को दोनों हाथों से संभाले जब लाज भरी, नयी सुहागन वधू धीरे-धीरे खेत की ओर अपने पग बढ़ाती है तो सीप की वेणियाँ रजत-कंकणों की भाँति झंकृत हो उठती हैं और सारा गाँव जान लेता है कि वधू अपने प्रियतम को कलेउ कराने जा रही है।
28. बिशनी और मुन्नी को किसकी प्रतीक्षा है, वे डाकिये की राह क्यों देखती हैं?
उत्तर :- बिशनी की पुत्री मुन्नी को मानक की चिट्ठी की प्रतीक्षा है। बिशनी मानक की माँ और मुन्नी उसकी सगी बहन है। बिशनी और मुन्नी डाकिये की रोज राह देखती हैं क्योंकि पहले उसके पुत्र मानक की चिट्ठी हर पंद्रहवें रोज आ जाया करती थी किन्तु इस बार दो महीने पूरे होनेवाले थे और चिट्ठी नहीं आयी थी।
29. स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है? क्या ऐसा कहना उचित है?
उत्तर :- नारियों की उपेक्षा करते हुए अंग्रेज लेखक बर्नाड शॉ ने नारी को अहेरिन और नर को अहेर माना है। अर्थात् नारी शिकार करना जानती है और उसका शिकार पुरुष है। उसका मानना है कि अहेर (पुरुष) का अहेरिन (नारी) से बच कर रहना चाहिए।
कुछ कवि तो बहुत नीचे के स्तर पर आकर नारी को ‘नागिन’ या ‘जादूगरनी’ समझते हैं। नारियों के बारे में ऐसा कहना उचित नहीं है। जहाँ तक अंग्रेजी लेखक बर्नार्ड शॉ की बात है वे पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित थे। पश्चिमी सभ्यता ने नारी को उपभोग की वस्तु मान लिया है।
जहाँ तक नारियों को ‘नागिन’ या ‘जादूगरनी’ मानने की बात है, सर्वथा अनुचित है। ये सब झूठ बातें हैं। पुरुषों के इस भाव में उनकी दुर्बलता का भाव छिपा है। वे ऐसा कह अपनी श्रेष्ठता कायम करना चाहते हैं। वास्तव में, विकार नारी में भी है और नर में भी। इतना ही नहीं, नाग और जादूगर के गुण भी नारी में कम, पुरुष में अधिक होते हैं। आखेट तो मुख्यतः पुरुष का ही स्वभाव है।
30. दूसरे पद में तुलसी ने दीनता और दरिद्रता का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर : दीनता और दरिद्रता लगभग समानार्थक शब्द हैं। दीनता दीन होने का भाव है। दीनता में नम्रता होती है। दीनता गरीबी को कहते हैं। दीनता विपन्नता को कहते हैं। दीनता मनुष्य की दुरवस्था है। दीनता में मनुष्य की दुर्दशा होती है। दरिद्रता भी गरीबी, कंगाली, निर्धनता और अभावग्रस्तता का दूसरा नाम है। दीनता दूर हो सकती है, दरिद्रता के कीचड़ में फँसा आदमी फँसता ही जाता है। अकाल में उस समय लोग फँस गए थे। इसीलिए दीनता और दारिद्रय दोनों शब्दों का प्रयोग तुलसीदास ने किया है।
31. छत्रसाल की तलवार कैसी है?
उत्तर : रीतिकालीन कवि भूषण ने छत्रसाल की तलवार का बड़ा प्रभावी वर्णन किया है। उस बुंदेला वीर की तेज धारवाली देदीप्यमान तलवार जब म्यान से बाहर आती थी तो वह प्रलय के सूर्य की तीक्ष्ण किरण की तरह प्रतीत होती थी। वह शत्रु दल के हाथियों के झुण्ड को उसी तरह विकीर्ण कर देती थी जिस तरह सूर्य की किरणें घनीभूत अंधेरे को विघटित कर देती हैं।
32. बंधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है?
उत्तर : जनता की सरकार के खिलाफ और शोषितों की शोषकों के खिलाफ अब मुट्ठी बँध चुकी है। ये जन मुट्ठी बाँधकर निर्णय ले चुके हैं कि शोषकों को इस धरती से हम मार भगाएँगे। इनका लक्ष्य निर्धारित हो चुका है। सावधान, सावधान पूँजीपतियों, सावधान।
33. कवयित्री का खिलौना क्या है?
उत्तर : कवयित्री का खिलौना उसका बिछुड़ा हुआ पुत्र है।
34. ‘उषा’ कविता में आकाश के बदलते रंगों का वर्णन करें।
उत्तर : उषाकालीन आकाश की सुषमा देखते ही बनती है। प्रातः का नभ बहुत नीले शंख जैसा दिव्य और प्रांजल था। भोर का नभ राख से लीपा हुआ गीले चौके (रसोई) के समान पवित्र था। भोर का नभ वैसा था, जैसे बहुत काली सिल (सिलौटी) जरा से लाल केसर से धली हर्ड हो। ललिमा छा गई थी। स्लेट पर लाल खड़िया चॉक कोई मल दे तो जैसा रंग उभरेगा वैसा ही नभ का रंग था। नीले जल में किसी आदमी की हिलती हो देह-वैसा नभ था। उषा का जादू जब टूटता है, तो सूर्योदय हो जाता है।
निष्कर्षतः उषा के साथ प्रांजल, दिव्य और पारदर्शी बिम्बों का निर्माण कवि शमशेर ने किया है। कविता बिम्बों और विशेषणों से सार्थक बन गई है।
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