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आरक्षण हिंदी लेखन 

अनुसूचित जातियाँ एवं जनजातियाँ सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टि से उपेक्षित थीं, अतः संविधान सभा के अधिसंख्य सदस्य इन्हें आरक्षण देने के पक्षधर थेपर, कुछ सदस्य आरक्षण के विरोधी थीसभा में बिहार के तजम्मुल हुसैन ने कहा था, आरक्षण किसी भी रूप में, किसी भी संप्रदाय या किसी भी वर्ग के लिए सैद्धांतिक दृष्टि से गलत हैसरदार पटेल ने अनुसूचित जातियों के आरक्षण का समर्थन किया, पर मजहबी आरक्षण को समाप्त करने का प्रस्ताव रखते हुए कहा, अब हमारा लक्ष्य यथाशीघ्र इस श्रेणी विभाजन और अंतर को समाप्त करना और सबको समानता के स्तर पर ले आना हैपंडित नेहरू ने अनुसूचित जाति के आरक्षण को उचित ठहराया, पर वे इसे महज दस वर्षों के लिए ही सही मानते थेउन्होंने कहा, मुझे खशी है कि यह व्यवस्था सिर्फ 10 साल के लिए ही हैमैं तो यहाँ तक चाहता हूँ कि जो रक्षण बाकी हैं, वे भी समाप्त होंआरक्षण व्यवस्था को उठा देना केवल सिद्धांततः अच्छा है, ल्कि राष्ट्र और दुनिया के लिए अच्छा कदम है

अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था 1933 में शुरू हुईब्रिटिश प्रधानमंत्री जे. रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने महात्मा गाँधी को लिखे पत्र (09.09.1933) में इसे बीस वर्ष तक ही चलाने का वायदा किया थासंविधान सभा में आरक्षण की व्यवस्था महज दस वर्षों के लिए हुईसंविधाननिर्माण के पूर्व डॉ. अम्बेदकर ने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति परिसंघ की तरफ से संविधान सभा को एक ज्ञापन (15 मार्च 1947) भेजाइसमें अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा के उपायों को सुनिश्चित करने और पच्चीस वर्षों तक ऐसे रक्षण को निर्बाध रूप से जारी रखने की बात कही गई थीतात्पर्य यह है कि जातिआधारित आरक्षण सभी स्तरों पर समयबद्ध ही थेपर, आज समयसीमा का कोई अर्थ नहीं रह गया हैलगभग साढ़े पाँच दशकों से आरक्षण की यह व्यवस्था निर्बाध रूप से लागू है और ऐसा नहीं लगता कि यह व्यवस्था निकट भविष्य में समाप्त हो जाएगीआरक्षण अब जातिहितके लए नहीं, राजनीतिहितके लिए हैअतः, यह अपनी निरर्थकता में भी घसटता हुआ चलता रहेगा और राजनेताओं के स्वार्थ की पूर्ति होती रहेगीसंविधान में आरक्षण से हुए लाभहानि की जाँच कराने के प्रावधान भी , पर लाभहानि पर सम्यक रूप से विचार नहीं हुआआरक्षणअवधि ढ़ती रही। आरक्षण को राजनीति ने जातीय वोट बैंक का परमाणु बम बनाया।

आरक्षणमें राजनीति इस तरह प्रवेश कर गई है कि अब इसपर (आरक्षणनीति पर) नए सिरे से विचार करने की जरूरत पड़ गई हैआरक्षणनीति पर अब गंभीरता से विचार करना होगा और जातिवादी राजनीति के भयंकर परिणामों से देश को बचाना होगानहीं तो, वह दिन दूर नहीं है जब हमारा पूरा राष्ट्र जातिवादी राजनीति की आग में झुलसकर विद्रूप हो जाएगाराजस्थान में (जून 2007) गुर्जर और मीणा जातियों के बीच रक्षके मुद्दे पर जो घमासान हुआ, वह चिंता का विषय बना हुआ हैराजस्थान मसले पर समिति बनी हैवह गुर्जर के आरक्षण पर विचार करेगीमीणा जाति ऐसे आरक्षण का विरोकर रही है। दोनों को संतुष्ट करना कठिन होगाजाट आरक्षण का औचित्य अभी भी प्रश्नवाचक हैभारत में हजारों जातियाँ हैंवे भी लाठी भाँजते निकल आईं, तो क्या होगा?जातिआधारित आरक्षण के साअब मजहबी आरक्षण की बात उठ रही हैइस तरह आरक्षण रक्षणसे आतंक की ओर पाँव बढ़ा रहा है

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आरक्षण की नीति तो बनी थी अच्छी नीयत से, पर आगे चलकर वोट की राजनीति ने संकीर्ण जातिगत विद्वेष के आधार पर अपनी रोटी सेंकनी शुरू कर दीआरक्षण हो, पर इसके चलते समाज में टकराव का माहौल हो, हमारा सारा ध्यान इसपर होना चाहिएअच्छा यही होगा कि हमें फिर से आरक्षण की नीति पर विचार करना चाहिए और आज की परिस्थितियों के मुताबिक इसका रूप परिवर्तित होना चाहिएआरक्षण की नीति ऐसी होनी चाहिए कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों की र्थिक शैक्षितथा सामाजिक प्रगति हो, पर भारत जातिगत विभाजन और जातिगत विद्वेष तथा कटुता का दंझेलेवीर पुंज का यह कथन सही लगता है कि आरक्षण का विस्तार अवसरवादी राजनीति का परिणाम है, वस्तुतः, आरक्षण के पैरोकार सेकुलर दलों में वंचितों और पिछड़ों के उत्थान की चिंता कम हैउनका लक्ष्य आरक्षण के माध्यम से जनाधाढ़ाना हैविडंबना यह है कि मताधाबढ़ाने के लिए देकी मूल सामाजिक संरचना को नष्ट किया जा रहा हैआरक्षण की व्यवस्था सदियों से पेक्षित और लांछित दलितों को समान वसर देने के लिए हुई थी, पर आज आरक्षण राजनीतिक दोहन का शिकाहैतः, इसके अदूरदर्शी विस्तार से सामाजिक कटुता और जातीय विद्वेष में वृद्धि होगी। तः, इसका विस्तार रोका जाना चाहिए और दलितों को आरक्षण के स्थान पर संरक्षण मिलना चाहिए। 

 वर्षाऋतु हिंदी लेखन 

वसंत को ऋतुओं का राजा और वर्षा को ऋतुओं की रानी कहते हैं। यह ऋतु बड़ी आकर्षक और सुहानी होती है। ग्रीष्मऋतु के बाद इस ऋतु का आगमन होता है। भारत में मौनसून की प्रथम वर्षा प्रायः मध्य जून में होती है। इसके बाद वर्षा होने का क्रम शुरू हो जाता है। सितंबर तक समय-समय लकी या भारी वर्षा होती रहती है। मध्य जून या अंतिम जून से सितंबर तक की अवधि को हम वर्षाऋतु में परिगणित करते हैं। पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे सभी इस ऋतु का स्वागत करते हैं; क्योंकि यह ऋतु इन्हें जीवन (जल) प्रदान करती है। 

चढ़ते आषाढ़ में जब आकाश में बादल घिरने लगते हैं तब सबके मन में झमाझम वर्षा की कल्पना से आनंद की लहरें मचलने लगती हैं। किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं हता! बच्चे उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देकर प्रसन्न हो जाते हैं और उछल-कूद मचाने लगते हैं। पहली वृष्टि होती है, सबकी प्रतीक्षा सुहागिन होती है। बच्चे झमाझम वर्षा में चहक-चहककर स्नान करने लगते हैं। किसान फसलों के संबंध में योजनाएँ बनाने लगते हैं। _वर्षाऋतु में प्रकृति के अंग-अंग में हरापन छा जाता है। पेड़-पौधे वर्षा में झूम-झूमकर स्नान करते हुए इस ऋतु की प्रशंसा में नृत्य करते हुए जान पड़ते हैं। यह ऋतु सूखी घास में भी जान डाल देती है, सूखी टहनियों में मरसता का संचार कर देती है और सूखी धरती में तरलता का विधान कर देती है। इस ऋत की तरलता सूखे आकाश में आर्द्रता का विस्तार करती हैऋत में यदि पर्याप्त वर्षा हुई तो मैदान मखमली घास से ढंक जाते हैं, नदि लहरा उठती हैं और सूखे कूपतालाब पानी से लबालब भर जाते हैंइस में पर्याप्त से अधिक वर्षा होने पर नदियों में बाढ़ जाती है जिजानमाल की अपार क्षति होती है। 

वर्षा की फुहारें मनभावन होती हैं, पर इससे कम मनभावन नहीं होता इसके पूर्व का दृश्य! वर्षा के पूर्व आकाश में कालेकाले मेघ घिरने लगते हैंधीरेधीरे हवा बहने लगती हैबादलों के अंक (गोद) में बिजली कौंधने लगती हैरह-रहकर बादल गरजने लगते हैंरंगबिरंगे बादलों की धमाचौकड़ी भला किसका मन नहीं मोह लेती! ऊपबादलों की माचौकड़ी और नीचे (धरती ) बालकों की धमाचौकड़ीकभी तेज हवा के झोंके बादलों को उड़ाकर आकाश में इस छोर से उस छोर कर देते हैं, तो कभी मंट हवा के मधुर स्पर्श बादलों को (पासपास आकर अपनी) एकता प्रकट करने का अवसर प्रदान करते हैंधरती के पेड़पौधे वर्षा के स्वागत में झूम उठते हैं, मेढ़क टरटराने लगते हैं, पंछी अपनेअपने बसेरे की ओर जाने के लिए तत्पर हो उठते हैं और कृषकों के हृदय में झमाझम वृष्टि के सार्थपने सजने लगते हैं। 

Aarakshan Essay in Hindi : आरक्षण वर्षाऋतू Varsha Rittu हिंदी लेखन

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