लहना सिंह lahna singh का चरित्र-चित्रण / उसने कहा था शीर्षक कहानी का चरित्र चित्रण usne kaha tha chapter ka charitra chitran
लहना सिंह (उसने कहा था)
लहनासिंह ‘उसने कहा था‘ शीर्षक कहानी का मुख्य पात्र है जिसका पहला परिचय अमृतसर के बाजार में होता है। उस समय लहनासिंह की उम्र 12 वर्ष की थी। किशोर वय, शराती चुलबुला । उसका यह शरारतीपन बाद में युद्ध के मैदान में भी दिखाई देता है। वह अपने मामा के यहाँ आया हुआ है । वहीं बाजार में उसकी मुलाकात 8 वर्ष की एक लड़की से होती है। अपनी शरारत करने की आदत के कारण वह लड़की से पृछता है–“तेरी कुड़माई हो गई।” और फिर यह मजाक ही उस लडकी से उसका संबंध सूत्र बन जाता है। लेकिन मजाक–मजाक में पूछा गया यह सवाल उसके दिल में उस अनजान लड़की के प्रति मोह पैदा कर देता है। ऐसा ‘मोह‘ जिसे ठीक–ठीक समझने की उसक उम्र नहीं है। लेकिन जब लड़की बताती है कि हां उसकी कुड़माई (सगाई) हो गई है, तो उसके हृदय को आघात लगता है! शायद उस लड़की के प्रति उसका लगाव इस खबर को सहन नहीं कर पाता और वह अपना गुस्सा दूसरो पर निकालता है। लहनसिंह के चरित्र का यह पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण तो है लेकिन असामान्य नहीं। लड़की के प्रति लहनासिंह का सारा व्यवहार बालोचित है। लड़की के प्रति उसका मोह लगातार एक माह तक मिलने–जुलने से पैदा हुआ है और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
लेकिन लहनासिंह के चरित्र की एक और विशेषता का उजागर बचपन में ही हो जाता है, वह है उसका साहस । अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे को बचाने की कोशिश। लहनासिंह जब सूबेदारों से मिलता है तो वह बताती है कि किस तरह एक बार उसने उसे तांगे के नीचे आने से बचाया था और इसके लिए वह स्वयं घोड़े के आगे चला गया था।
इस तरह लहनासिंह के चरित्र के ये दोनों पक्ष इस कहानी में उसके व्यक्तित्व को निर्धारित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं एक अनजान बालिका के प्रति मन मे पैदा हुआ स्नेह भाव और दूसरा, उसका साहस लहनासिंह किसान का बेटा है। खेती छोड़कर सिपाही बन जाता है।
लेकिन सिपाही बन जाने के बाद भी उसकी मानसिकताएँ उसके स्वप्न और उसकी आकांक्षाएँ किसानों–सी ही रहती है। सेना में वह मामूली सिपाही है जमादार के पद पर। लेकिन वहाँ भी किसानी जीवन की समस्याएँ उसका पीछा नहीं छोडतीं। वह छुट्टी लेकर अपने गाँव जाता है।
जीमन के किसी मुकदमें की पैरवी के लिए। कहानीकार यह संकेत नहीं देता है कि लहनासिह विवाहित है या अविवाहित । लेकिन लहनासिंह की बातों से यही लगता है कि वह अविवाहित है। उसका एक भतीजा है–कीरतसिंह जिसकी गोद में सिर रखकर वह अपने बाकी दिन गुजारना चाहता है। अपने गांव, अपने खेत, अपने बाग में। उसे सरकार से किसी जीमन–जायदाद की उम्मीद नहीं है न ही खिताब की। लहनासिंह एक साध गरण जिन्दगी जी रहा है उतनी ही साधारण जितनी कि किसी भी किसान या सिपाही की हो सकती है । उस लड़की की स्मृति भी समय की परतों के नीचे दब चुकी है जिससे उसने कभी पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई ।
लेकिन उसके साधारण जीवन में जबरदस्त मोड़ तब आता है जब उसकी मुलाकात 25 साल बाद सूबेदारनी से होती है। सूबेदारनी उसे इतने सालों बाद भी देखते ही पहचान लेती है। इससे पता चलता है कि बचपन की घटना उसको कितनी अधिक प्रभावित कर गई थी। जब वह उसे बचपन की घटनाओं का स्मरण कराती है तो वह अवाक्–सा रह जाता है। भूला वह भी नहीं है, लेकिन समय ने उस पर एक गहरी परत बिछा दी थी, आज एकाएक धूल पोछकर साफ हो गई है। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों को अब तक अपने मन में जिलाये रखा। यह लहनासिंह के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। उसी संबंध के बल पर सूबेदारनी का यह विश्वास करना कि लहनासिह उसकी बात टालेगा नहीं लहनासिंह के लिए और भी विस्मयकारी था। वस्तुतः उसका लहनासिंह उसकी बात टालेगा नहीं। लहनासिंह पर यह विश्वास ही बचपन के उन संबंधों की गहराई को व्यक्त करता है और इसी विश्वास की रक्षा करना लहनासिह के जीवन की धुरी बन जाता है।
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लहना सिंह एक वीर सिपाही है और खतरे के समय भी अपना मानसिक संतुलन नहीं खोता खंदक में पड़े–पड़े उकताने से वह शत्रु पर आक्रमण बेहतर समझता है।यहाँ उसकी कृषक मानसिकता प्रकट होती है जो निकम्मेपन और ऊब से बेहतर तो लड़ते हुए अपनी जान देना समझता है |
जब उसकी टुकड़ी में जर्मन जासूस लपटन साहब बनकर घुस आता है तब उसकी सूझबूझ और चतुराई देखते ही बनती है। उसे यह पहचानने में देर नहीं लगती कि यह लपटन साहब नहीं बल्कि जर्मन जासूस है और तब वह उसी के अनुकूल कदम उठाने में नहीं हिचकिचाया और बाद में उस जर्मन जासूस के साथ मुठभेड़ या लड़ाई के दौरान भी उसकी साहसिकता और चतुराई स्पष्ट उभर कर प्रकट होती है। किन्तु इस सारे घटनाचक्र में भी वह सूबेदारनी को दिये वचन के प्रति सजग रहता है और अपने जीते जी हजारासिंह व बोधासिंह पर किसी तरह की आंच नहीं आने देता । यही नहीं उनके प्रति अपनी आंतरिक भावना के कारण ही वह अपने घावों के बारे में सूबेदार को कुछ नहीं बताता । पसलियों में लगी गोली उसके लिए प्राणघातक होती है और अंत में वह मर जाता है
लेकिन मृत्यु शय्या पर उसकी नजरों के आगे दो ही चीजें मंडराती हैं–एक सूबेदारनी का कहा वचन और उसका आम के बाग में कीरतसिह के साथ आम खाना। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों के बल पर लहना सिंह पर जो भरोसा किया था उसी भरोसे के बल पर उसने अने पति और पुत्र की जीवन की रक्षा की भीख मांगी थी, लहनासिंह अपनी जान देकर उस भरोसे की रक्षा करता है।
यह विश्वास और त्याग सूबेदारनी और लहनासिंह के संबंधों की पवित्रता और गहराई पर मोहर लगा देता है। स्त्री-पुरुष के बीच यह बिल्कुल नये तरह का संबंध है और इस दृष्टि से लहनासिंह एक नये तरह का नायक है जो नये सूक्ष्म रूमानी मानवीय संबंधों की एक आदर्श मिसाल सामने रखता है।
अपने व्यक्तित्व की उन ऊँचाइयों के बावजूद उसकी मृत्यु त्रसद कही जाएगा । उसकी चतुराई एवं उसकी साहसिकता जिसके कारण जर्मनी को शिकस्त खानी पड़ी उस योग्य भी नहीं समझी जाती कि कम से कम मृत्यु की सूचना में इतना उल्लेख तो होता कि युद्ध के दौरान उसने साहस दिखलाते हुए प्राणोत्सर्ग किया बल्कि समाचार में इस रूप में छपता है कि “मैदान में घावों से भरा।” इससे यह जाहिर होता है कि जिस सूबेदारनी के कारण इसके पति और पुत्र की रक्षा करता है उसके लिए भी लहनासिंह का बलिदान अकारण ही चला जाता है।
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