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1. ‘अर्द्धनारीश्वर’ की कल्पना क्यों की गई?
उत्तर- अर्द्धनारीश्वर, शंकर और पार्वती का कल्पित रूप है। अर्द्धनारीश्वर के द्वारा स्त्री और पुरुष के गुणों को एक कर यह बताया गया है कि नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात् नरों में नारियों के गुण आएं तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं बल्कि उनकी पूर्णता में वृद्धि ही होती है। आज इसकी जरूरत इसलिए है कि पुरुष समाज वर्चस्ववादी है और उसने यह समझ रखा है कि पुरुष में स्त्रीयोचित गुण आ जाने पर स्त्रैण हो जाता है। उसी प्रकार स्त्री समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगता है। इस प्रकार पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है तथा विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय लगता है। इसलिए अर्द्धनारीश्वर की जरूरत है। संसार में पुरुषों के समान ही स्त्रियाँ हैं। जिस प्रकार पुरुषों को सूर्य की धूप पर बराबर अधिकार है उसी तरह नारियों को भी यह अधिकार है। पुरुष ने नारी को षड्यंत्रों के जरिये उसे अपने अधीन कर रखा है। दिनकर इस परुष वर्ग एवं स्त्री वर्ग को समझाना चाहते हैं कि नारी-नर पूर्ण रूप से समान हैं। पुरुष यदि नारियों के कुछ गुण अपना ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है और नारी पुरुषों के गुण अपना ले तो भय से मुक्त हो सकती है। इसीलिए अर्द्धनारीश्वर की कल्पना की गई है।
2. प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग क्या है?
उत्तर- प्रवत्तिमार्ग : प्रवृत्तिमार्ग को गृहस्थ जीवन की स्वीकृति का मार्ग है। दिनकरजी के अनुसार गृहस्थ जीवन में नारियों की मर्यादा बढ़ती है। जो पुरुष गृहस्थ जीवन को अच्छा मानते हैं उन्हें प्रवृत्तिमार्गी माना जाता है। जो प्रवृत्तिमार्गी हुए, उन्होंने नारियों को गले से लगाया। नारियों को सम्मान दिया। प्रवृत्तिमार्गी जीवन में आनन्द चाहते थे और नारी आनन्द की खान है। वह ममता की प्रतिमूर्ति है। वह दया, माया, सहिष्ण गुता की भंडार है।
निवृत्तिमार्ग : निवृत्तिमार्ग गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करनेवाला मार्ग है। गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करना नारी को अस्वीकार करना है। निवृत्ति मार्ग से नारी की मान मर्यादा गिरती है। जो निवृत्तिमार्गी बने उन्होंने जीवन के साथ नारी को भी अलग ढकेल दिया, क्योंकि वह उनके किसी काम की चीज नहीं थी। उनका विचार था कि नारी मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। यही कारण था की प्राचीन विश्व में जब वैयक्तिक मक्ति की खोज मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना मानी जाने लगी, तब झंड के झुंड विवाहित लोग संन्यास लेने लगे और उनकी अभागिन पत्नियों के सिर पर जीवित वैधव्य का पहाड़ टूटने लगा। बुद्ध, महावीर, कबीर आदि संत महात्मा निवृत्तिमार्ग के समर्थक थे।
3. ‘उसने कहा था’ कहानी का प्रारंभ कहाँ और किस रूप में होता है?
उत्तर- ‘उसने कहा था’ प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गयी कहानी है। गुलेरीजी ने लहनासिंह और सूबेदारनी के माध्यम से मानवीय संबंधों का नया रूप प्रस्तुत किया है। लहना सिंह सूबेदारनी के अपने प्रति विश्वास से अभिभूत होता है, क्योंकि उस विश्वास की नींव में बचपन के संबंध हैं। सूबेदारनी का विश्वास ही लहनासिंह को उस महान त्याग की प्रेरणा देता है|
कहानी एक और स्तर पर अपने को व्यक्त करती है। प्रथम विश्वयुद्ध की पष्ठभमि पर यह एक अर्थ में युद्ध-विरोधी कहानी भी है। क्योंकि लहनासिंह के बलिदान का उचित सम्मान किया जाना चाहिए था परन्तु उसका बलिदान व्यर्थ हो जाता है और लहनासिंह का करुण अंत युद्ध के सिद में खड़ा हो जाता है। लहनासिंह का कोई सपना पूरा नहीं होता।
4. यह जानकर कि लड़की की कुड़माई हो गई, लड़के की क्या हालत हुई ?
उत्तर- उसने कहा था कहानी में लड़का (लहना सिंह) लड़की से एक दिन जब वही प्रश्न पूछता है कि तेरी कुड़माई (मंगनी) हो गई तब लडकी धत् कहने के बजाय कहती है-“हाँ कल ही हो गई। देखा नहीं यह रेशम के फुलकों वाला शालू। लहना सिंह हतप्रभ रह जाता है।
5. ‘रोज’ कहानी में मालती को देखकर लेखक ने क्या सोचा?
उत्तर- ‘रोज’ कहानी में मालती को देखकर लेखक चिंता में पड़ गया क्योंकि जवानी के दिनों में मालती और विवाहित मालती में काफी अन्तर आ गया था। क्योंकि विवाहित मालती का शरीर गृहस्थ जीवन के बोझ तले दब गया है। यह तो मालती नहीं है केवल उसकी छाया है। लेखक को ऐसा आभास हुआ।
6. भगत सिंह किस प्रकार के देशभक्त की आवश्यकता महसूस करते थे?
उत्तर- भगत सिंह महसूस करते हैं कि लोग निष्ठापूर्वक त्याग, लग्न तथा आत्मोत्सर्ग की भावना से युक्त होकर देश की आजादी में योगदान करें। ऐसे देशभक्त की आवश्यकता महसूस करते थे कि हमें दूसरे पर आश्रित नहीं होना चाहिए तथा दोषारोपण नहीं करना चाहिए। बल्कि त्याग, लगन एवं आत्मोत्सर्ग कर देश के लिए कुर्बान हो जाएँ।
7. नाभादास किसके समकालीन थे और किसके शिष्य थे?
उत्तर- नाभादास गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे और स्वामी अग्रदास के शिष्य थे।
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